आज हम इस आर्टिकल में जानेंगे कि हमारी मृदा (मिट्टी) (Soil) कितने प्रकार की हैं और मिट्टी से जुड़ी हर जानकारी को पूरे विस्तार से जानेंगे तो आर्टिकल के साथ शुरू से लेकर अंत तक बने रहें और ध्यान से पढ़ें इसमें आपको बहुत ही ज्यादा आसान भाषा में हमारी मृदा (मिट्टी) (Soil) कितने प्रकार की हैं? समझाया गया है। वह भी इमेज के साथ तो चलिए शुरू करते हैं और जान लेते हैं कि हमारी मृदा (मिट्टी) (Soil) के कुछ महत्वपूर्ण बातें?
मृदा (मिट्टी) (Soil)
मृदा (Soil) मृदा भूमि की ऊपर पाई जाने वाली दानेदार परत है। जिसका निर्माण मूलरूप से चट्टानों विखण्डित होने उनमें वनस्पति व जीवों के सड़ने, गलने तथा जलवायु की क्रिया में निर्मित अम्लीय पदार्थों से लाखों वर्षों की प्रक्रिया के बाद मृदा का रूप लेती है। इसका निर्माण चट्टानों के घिसावट से होता है। जिसमें अत्यधिक समय लगता है। मिट्टी के अध्ययन विज्ञान को मृदा विज्ञान (Pedology) जोन कहते हैं। मिट्टी कि पांच परत होती है। इन पांचों परतों को मिलाने पर मृदा परिच्छेद यास्बान Profile बनता है।
मिट्टी कि पांच परत (Five Layers of Soil)
- होरिजोन
- Horizon A (होरिजोन A)
- Horizon B (होरिजोन B)
- Horizon C (होरिजोन C)
- Horizon R (होरिजोन R)
होरिजोन (Horizon)
इसे ह्यूमस कहते हैं। यह मिट्टी का सबसे ऊपरी भाग होता है। इसमें सर्वाधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थ तथा खाद्य पाये जाते हैं। यह जंगलों की मृदा में अधिक होता है।
होरिजोन A (Horizon A)
इसे ऊपरी मृदा कहते हैं। छोटे पौधे का जड़ होरिजोन A तक ही जाता है। यह बहुत ही उपजाऊ होती है। इसमें किड़े-मकोड़े और चूहे रहते हैं।
होरिजोन B (Horizon B)
बड़े पेड़ पौधों के जड़ होरिजोन B तक ही जाते हैं।
होरिजोन C (Horizon C)
यह खेतों के लिए अच्छी नहीं है।
होरिजोन R (Horizon R)
यहाँ केवल पत्थर पाये जाते हैं।
भूगोल के अनुसार मिट्टी के प्रकार (Soil Types According to Geography)
भूगोल के अनुसार मिट्टी को दो भागों में बाँटते हैं। जो कुछ इस प्रकार हैं।
- स्थानवद्ध मिट्टी (Localized Soil)
- स्थानांतरि मिट्टी (Transfer Soil)
स्थानवद्ध मिट्टी (Localized Soil)
स्थानवद्ध मिट्टी (Localized Soil) वैसी मिट्टी जो अपने बनने वाले स्थान पर ही रुकी रहती है। उसे स्थानवद्ध मिट्टी (Localized Soil) कहते हैं। जैसे :– काली, लाल, लेटेराइट मिट्टी।
स्थानांतरि मिट्टी (Transfer Soil)
स्थानांतरि मिट्टी (Transfer Soil) वैसी मिट्टी जो अपने बनने वाले स्थान को छोड़कर वायू या जल के द्वारा दूसरे स्थान पर चली जाती है। उसे स्थानांतरि मिट्टी (Transfer Soil) कहते हैं। जैसे :- जलोढ़ मिट्टी।
भारत की मिट्टीयाँ (Soils of india)
Indian Concil for agriculture Research (ICAR) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भारत की मिट्टी को आठ भागों में विभाजित किया है।
- जलोढ़ मिट्टी (Alluvium)
- काली मिट्टी (Black Soil)
- लाल मिट्टी (Red Clay)
- लेटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)
- पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil)
- मरुस्थलीय मिट्टी / बलुई मिट्टी (Desert Soil)
- लवणीय मिट्टी (Saline Soil)
- दलदली मिट्टी (Marshy Soil)
भारत में सर्वाधिक जलोढ़ मिट्टी (Alluvium) पाई जाती है।
याद रखने का Trick जिससे आप आसानी से भूलेंगे नहीं।
जला कर लोट
इसमें
- ज का अर्थ जलोढ़ मिट्टी
- ला का अर्थ लाल मिट्टी
- क का अर्थ काली मिट्टी
- र का अर्थ रेगूर मिट्टी
- लोट का अर्थ लेटेराइट मिट्टी
जलोढ़ मिट्टी (Alluvium)
- क्षेत्र : भारत का सम्पूर्ण उत्तरी मैदान और तटीय मैदान
- प्रचुरता : चूना पत्थर तथा पोटेशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
- कमी : नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा ह्यूमस की कमी है।
काली मिट्टी (Black Soil)
इसका निर्माण ब्लास्ट चट्टानों के टूटने फूटने से होता है। इसे लावा निर्मित मिट्टी कहते है। इसमें के सर्वाधिक मात्रा में ह्यूमस होता है। यह मिट्टी सबसे ज्यादा जल सोखती है। काली मिट्टी को रेगुर मिट्टी, कपास की मिट्टी और लावा मिट्टी भी कहते हैं। काली मिट्टी (Black Soil) का काला रंग 'टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट' की उपस्थिति के कारण होता है। यह कपास तथा गन्ना के उत्पादन के लिए अच्छी है। यह 13% क्षेत्र पर पाया जाता है।
- क्षेत्र : मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक
प्रायद्वीपीय भारत में काली मिट्टी सबसे ज्यादा पायी जाती है। काली मिट्टी का सबसे ज्यादा विस्तार महाराष्ट्र में देखने को मिलता हैं।
लाल मिट्टी (Red Clay)
लाल मिट्टी (Red Clay) प्रायद्वीपीय भारत के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पायी जाती है। लाल मिट्टी (Red Clay) का रंग लाल फेरिक ऑक्साइड के उपस्थिति के कारण होता है। इसमें खनिज अधिक पाये जाते हैं। इस मिट्टी में लोहा और सिलिका की अधिकता होती है। किन्तु यह खेती के लिए के लिए अच्छी नहीं है। सबसे ज्यादा इसका विस्तार तमिलनाडु एवं आंध्रप्रदेश में देखने को मिलता है। यह मिट्टी बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त होती है। जब लाल मिट्टी जल सोख लेती है यानि कि जलयोजीत रूप में होती है, जब यह पीली दिखाई पड़ती है। ये 18% क्षेत्र पर पाए जाते हैं।
- क्षेत्र : यह मिट्टी तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, नागालैण्ड, महाराष्ट्र, कर्नाटक के कुछ भाग में पायी जाती है।
लेटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)
लेटेराइट मिट्टी (Laterite Soil) उस क्षेत्र में पायी जाती है। जहाँ पर 200 सेंटीमीटर (200cm) से अधिक वर्षा होती है और अत्यधिक गर्मी पड़े। इसे मखमली मिट्टी भी कहते हैं। इसका निर्माण निच्छालन (Ltching) द्वारा होती है। इस विधि में तेज वर्षा के कारण मिट्टी के छोटे-छोटे कण भूमि के अंदर घूस जाते हैं। जिसमें यह भूमि ऊपर से पथरिली दिखती है। लेटेराइट मिट्टी (Laterite Soil) में लौह-ऑक्साइड एवं एल्युमिनियम की भरपूर मात्रा होती है। लौह-ऑक्साइड के कारण ही इस मिट्टी का रंग लाला होता है। यह काजू, मशाला, काफी, इलाइची तथा भवनों के ईंट बनाने के लिए अच्छी है। इसका सर्वाधिक विस्तार केरल है। जिस कारण इसे मशालों का राज्य कहते हैं।
- क्षेत्र : यह मिट्टी मुख्यतः केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में और उड़ीसा, मेघालय, असम की कुछ हिस्सों में पायी जाती है।
पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil)
इस प्रकार की मृदा का विस्तार पर्वतों पर देखने पर मिलता है। जहाँ पर हिमालय पर्वत का विस्तार है। वहीं इस प्रकार की मिट्टी पायी जाती है। यह अत्यधिक कठोर होती है। जिस कारण बनस्पती का अभाव होती है। यहाँ जंगली झारिया होती है और अल्पाइन वृक्ष पाया जाता है। यह भारत के उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र में पाये जाते हैं। पर्वतीय ढालों पर सेब, नाशपाती, चाय की खेती की जाती है।
- क्षेत्र : पर्वतीय का विस्तार जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम अरुणाचल प्रदेश में देखने को मिलता है।
दलदली मिट्टी (Marshy Soil)
दलदली मिट्टी (Marshy Soil) का विकास अत्यधिक वर्षा और वनस्पतियों के सड़ने के कारण होता है। दलदली मृदा में ह्यूमस की मात्रा अधिक होती है।
- क्षेत्र : दलदली मृदा का विस्तार मुख्यतः केरल, उत्तराखण्ड और पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में देखने को मिलता है।
मरुस्थलीय मिट्टी / बलुई मिट्टी (Desert Soil)
इस प्रकार की मृदा में नमी की कमी होती है। इसकी जल सोखने की क्षमता सबसे कम होती है। मरुस्थलीय भूमि होने के कारण यहाँ पर खाद्यान्न उगना संभव नहीं है। लेकिन मोटा अनाज जैसे :- बाजरा, ज्वार और सरसो की खेती की जाती है। इस मिट्टी में खजूर, नागफनी बवूल तथा कटीली झारिया होती है।
- क्षेत्र : इसका विस्तार भारत में मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, दक्षिण पंजाब और दक्षिण हरियाणा में देखने को मिलता है।
लवणीय मिट्टी (Saline Soil)
जब मिट्टी की प्रकृति क्षारीय होती है और उसमें नमक की मात्रा बढ़ जाती है तो उसे लवणीय मिट्टी (Saline Soil) कहते हैं। लवणीय मृदा को रेह, कल्लर, ऊसर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
- क्षेत्र : भारत में इस मिट्टी का सबसे ज्यादा विस्तार गुजरात के कच्छ के रण में देखने को मिलता है।
- मुख्यत : फसलों उगाने के लिए भूमि का PH मान PH 6 से PH 7.5 की बीच होनी चाहिए।
अम्लीय मृदा (Acidic Soil)
यह खेती के लिए अच्छी नहीं होती है। मिट्टी में अम्लीयता को कम करने के लिए चूने का उपयोग किया जाता है।
क्षारीय मृदा (Alkaline Earth)
यह भी खेती के लिए अच्छी नहीं होती है। मिट्टी में क्षारीयता को कम करने के लिए जिप्सम का उपयोग किया जाता है।
जरूरी बातें जो आपको पता होनी चाहिए।
भारत नाइट्रोजनी उर्वरक पर आत्म निर्भर है। यूरिया में 46% नाइट्रोजन पाया जाता है। फास्फेट, उर्वरक की प्राप्ती जानवरों के हड्डी से होती है। इसकी पूर्ति के लिए सुपर फास्फेट का छिड़काव किया जाता है। बीजे बोते समय फास्फेट कि अधिक आवश्यकता होती है।
फसल = N:P:K
4:2:1
बीज रोपण = N:P:K
1:2:1
महत्वपूर्ण बातें (Important things of soils)
- भारत की सभी मृदा में N, P तथा ह्यूमस की कमी है
- United States Department of Agriculture ने मृदा को 11 भाग में बाँटा है।
- Insepti Soil = (जलोढ़)
- Anti Soil = (लाल)
- Algi Soil = (काली)
- Verti Soil = (लेटराइट)
Conclusion,
हमें उम्मीद है कि आप को अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा कि हमारी मृदा (मिट्टी) (Soil) कितने प्रकार की हैं और मिट्टी से जुड़ी हर जानकारी समझ में आ गया होगा अगर कोई जानकारी रह गई हो तो हमें Comment करके जरूर बताएं और अपने प्यारे दोस्त को भी जरूर Share करें जिससे यह जानकारी उन्हें भी आसान भाषा में प्राप्त हो सके और अपने सोशल मीडिया जैसे Facebook, WhatsApp, Telegram पर भी इन्हें जरूर शेयर करें तो मिलते हैं ऐसे ही information article के साथ जब तक के लिए बाय
_जय हिंद जय भारत
अपना बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से बहुत धन्यवाद